दशाश्वमेध घाट, जो कि वाराणसी में स्थित है, गंगा नदी के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक स्नान घाट है। इस घाट का निर्माण 1740 ईसवीं में बाजीराव पेशवा I ने शुरू किया था। हालांकि, इसे 1774 ईसवीं में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पुनर्निर्माण कराया था। यह घाट काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है, इसलिए इसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। भगवान ब्रम्हा ने दस अश्वों का बलि दिया था इसलिए इससे dashashwamedh घाट से जाना जाता है इस घाट मै शाम को महा गंगा आरती होती है जो बहुत ही मन मोहक होता है ये व्यू देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है
भगवान ब्रह्मा का अद्वितीय यज्ञ:
दशाश्वमेध घाट की उत्पत्ति एक अद्वितीय धार्मिक कथा से जुड़ी है, जिसमें भगवान ब्रह्मा का महत्वपूर्ण योगदान है। पुराणों के अनुसार, यहां भगवान ब्रह्मा ने एक दशाश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने दस अश्वों का बलि देने का निर्णय लिया था। इस उदार कृति के कारण ही इस घाट को “दशाश्वमेध घाट” कहा जाता है।
महा गंगा आरती का सौंदर्य:
दशाश्वमेध घाट की अधिक महत्वपूर्ण घटना महा गंगा आरती है, जो हर शाम इस स्थल पर होती है। यह आरती गंगा की पवित्रता और उसके साथ मिलकर भगवान की पूजा का एक अद्वितीय रूप है। आरती के समय, घाट पर एक समृद्धि और ध्यान की भावना महसूस होती है जो लोगों को अपने आत्मा के साथ जोड़ने का अवसर देती है। इस भव्य आरती में उपस्थित सौंदर्य ने इसे एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव बना दिया है।
स्थापना और पुनर्निर्माण:
दशाश्वमेध घाट का निर्माण पहले 1740 ईसवीं में बाजीराव पेशवा I ने किया था।
इसका पुनर्निर्माण 1774 ईसवीं में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था।
स्थान:
उत्तर प्रदेश में स्थित होने के साथ-साथ, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के पास।
अद्भुत दृश्य:
गंगा के पानीकर दृश्य और आध्यात्मिक वातावरण के कारण दशाश्वमेध घाट एक आकर्षक स्थान बनाता है।
तीर्थयात्री और पर्यटक न केवल इसके धार्मिक महत्त्व के लिए बल्कि इसके आस-पास के रमणीय वातावरण के लिए भी इस घाट की ओर खिच जाते हैं।
सांस्कृतिक महत्त्व:
यह घाट न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र भी है।
दूरदूर से लोगों की भीड़:
महा गंगा आरती के समय, दशाश्वमेध घाट पर लोगों की भीड़ होती है, जो दूर-दूर से आती है। इस आरती का सौंदर्य देखने के लिए लोग अपने दैहिक और आत्मिक संबंध को मजबूत करने के लिए यहां पहुंचते हैं। धूप, दीप, और भक्ति की बातें इस स्थल को अद्वितीय बनाती हैं, जिससे इस अनूठे घाट की महिमा बढ़ती है।