सतना शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गैबीनाथ धाम एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है जहां खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है। इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है इसका इतिहास और कहानी, जिसमें शिवलिंग को महाकाल का दूसरा रूप माना जाता है। भक्त सोमवार को इस मंदिर में अपने इष्टदेव शिव की पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं और अपनी भक्ति के प्रतीक के रूप में दूध और पानी चढ़ाते हैं। महाशिवरात्रि के दौरान बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में भाग लेने के लिए दूर-दूर से लाखों भक्त आते हैं और महाशिवरात्रि पर अपने भगवान की पूजा करते हैं। इस खंडित शिवलिंग की कहानी औरंगजेब से जुड़ी है जिसने हजारों मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था।
इस खंडित शिवलिंग की कहानी औरंगजेब से जुड़ी है।
औरंगजेब के शासनकाल के दौरान, इस मंदिर के शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया गया था। धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों के प्रति अपनी असहमति के कारण औरंगजेब ने भारतवर्ष में कई हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया था, और गोविनाथ धाम भी उनमें से एक था।
कहा जाता है कि जब भगवान का शिवलिंग खंडित हुआ, तो एक तरफ से पानी और दूध निकलने लगा। इस अद्वितीय घटना के बाद, छेनी और हथौड़े की मार से मधुमक्खियां दूसरी तरफ से निकलने लगीं, जिससे हमलावरों को भागना पड़ा। इस घटना ने मंदिर की सच्चाई और भगवान की अद्वितीयता को साबित किया।
इस घटना के बाद से, इस मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा होती है और सोमवार को भक्तजन यहां आकर अपने इष्टदेव की उपासना करते हैं। यह कथा स्थानीय लोगों के बीच में प्रसिद्ध है और मंदिर को एक अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाती है।
गैवीधाम का महत्व चराप धाम से जल चढ़ाने से
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में चारों धामों से लाया हुआ जल चढ़ाने से यात्रा का अधिक फल मिलता है। यह एक अनोखे धार्मिक अनुष्ठान का प्रतीक है जो यात्री को गैवीनाथ धाम का चारों धामों से संबंध बताता है। पूर्वजों का कहना है कि यदि यात्री चारों धामों से लाया हुआ जल इस मंदिर में नहीं चढ़ाता तो उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है।