विंध्य क्षेत्र का ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल, जिसे आज “बसामन मामा” के नाम से जाना जाता है, यहां एक अद्भुत कहानी घटित हुई है। टमस नदी के सतधारा घाट पर एक पीपल के वृक्ष के पास एक अनूठी समाधि स्थल है, जो 33 करोड़ देवी-देवताओं से घिरा है। बसामन मामा की ताक़तवर कहानी इस स्थान को और भी शक्तिशाली बनाती है।
History of Basaman Mama यह कहानी रीवा जिले के सेमरिया विधानसभा क्षेत्र के गाँव कुम्हार के ब्रह्मदेव शुक्ला की है, जो बसामन मामा के रूप में मशहूर हुए। ब्रह्मदेव ने अपने पहले विवाह की पहली रात को सुहागरात कहा जाने वाले समय पृथ्वी और वृक्ष की सुरक्षा के लिए अपनी जान की क़र्बानी दी और वहीं पर एक समाधि स्थान स्थापित की।
इस कहानी के अनुसार, ब्रह्मदेव का जन्म कुम्हारा गाँव में हुआ था, जो ब्राह्मण शुक्ला परिवार से था। उन्होंने अपने घर के सामने पीपल देव की नियमित पूजा की और उसे ब्रह्म धाम कहा। एक दिन गाँव में एक राजा आया, जिसने ब्रह्मदेव के पीपल वृक्ष को काटने का प्रयास किया, लेकिन ब्रह्मदेव की अद्भुत शक्ति ने रुकावट डाली।
Basaman Mama राजा को इस घटना से धूर्त होकर ब्रह्मदेव के विवाह के समय वृक्ष को काट लिया। ब्रह्मदेव को यह सुनकर दुख हुआ, लेकिन उन्होंने उसी समय फैसला किया कि अपनी विदाई के बाद वह गाँव के लिए प्रस्थान करेंगे। ब्रह्मदेव ने अपने दूल्हे भेष में पियारी पहनकर तथा कटार साथ लेकर गाँव की ओर प्रस्थान किया।
ब्रह्मदेव ने गाँव पहुंचते ही राजा के कटे हुए वृक्ष की जगह सूखी लकड़ी को हरा-भरा बना देखा। इसके बाद उन्होंने गाँव को त्याग दिया और वहां से गढ़ी की ओर बढ़ते हुए राजा और गढ़ी के बीच आई एक राव के साथ मुलाकात की। उनकी बहस के दौरान ब्रह्मदेव की अद्भुत शक्ति ने राव को प्रभावित किया और उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली।